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होली क्यों मनाई जाती है, होली का इतिहास, होली कब मनाई जाती है, होली का महत्व आदि जानिए विस्तार से

होली :- होली का त्यौहार हिंदी के फाल्गुन माह में वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है, लोग यह भी कहते हैं कि इस पर्व वसंत ऋतु का आगमन भी होता है, क्योंकि इस समय पेड़ पौधों में नई पत्तियां, रंग बिरंगे फूलों और से वातावरण भी रंगीन हो जाता है। खेतों में सरसों, गेहूँ की बालियाँ, बाग-बगीचों में फूलों और पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब के सब उल्लास और उत्साह में होते हैं।
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होली त्योहार का विस्तृत वर्णन

होली कहां-कहां मनाई जाती है

होली रंगों और खुशियों का त्योहार है, होली हमारे देश (भारत) का एक प्रमुख, प्रसिद्ध और राष्ट्रीय त्योहार है, जिसे अब दुनिया भर में मनाया जाने लगा है। होली का त्योहार दो दिन मनाया जाता है, होली का त्यौहार विश्व के कई अन्य देशों में भी मनाया जाता है, जहां हिंदू लोग रहते हैं, लेकिन होली को भारत, नेपाल में प्रमुख त्योहार के रुप में मनाया जाता है। 


होली में क्या-क्या होता है

पहले दिन लकड़ियों को इकठ्ठा कर उसे जलाया जाता है, जिसे होलिका दहन कहते हैं। दूसरे दिन को धुलेंडी कहते हैं, इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि लगाते/फेंकते हैं, और ढोल बजा कर होली के गीत भी गाए जाते हैं, लोग एक दूसरे के घर रंग लगाते हैं, होली के दिन लोग पुरानी रंजिश को भूल कर एक दूसरे से गले मिलते हैं, यह सिलसिला दिनभर चलता है।  


शाम ढलने से पहले ही स्नान/नहा कर खाना खा कर थोड़ा आराम करने के बाद कपड़े बदल कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते है, अपने से बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और छोटों को आशीर्वाद देते हैं, और बराबरी के लोगों से गले मिलते हैं, इस दिन गुझिया, पापड़, नमकीन और मिठाइयां बांटी और खाई जाती हैं। 

होली में क्या-क्या बनता है

होली का प्रमुख पकवान गुझिया है, जो कि खोया (मावा) और मैदा से बनती है, जिसमें सूखे मेवों का मिश्रण भी होता है। होली के दिन शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते है जहाँ उनके स्वागत में गुझिया,नमकीन और मिठाइयां आदि परोसी जाती हैं। होली के दिन भांग या ठंडाई पीना भी एक प्रथा है। 


होलिका दहन का तरीका 

होली का त्यौहार आने के कई दिनों पहले से ही होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं, जिसके लिए लकड़ियां, गाय के गोबर से बने ऐसे उपले (कंडे) जिसका आकार बहुत छोटा होता है और जिनके बीच में छेद होता है, उस छेद में मूंज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है, आदि सभी को एकत्रित किया जाता है। 
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होली के दिन शाम को किसी सार्वजनिक स्थल पर बड़ी मात्रा में लकड़ियों को इकठ्ठा करके उसके ऊपर वही उपलों से बनी माला पहनाई जाती है, और होलिका दहन किया जाता है। जब होली जलने लगती है तब लोग अग्नि की पूजा करते हैं और होली की परिक्रमा भी करते हैं, यह परिक्रमा बहुत ही शुभ मानी जाती है।
होलिका का सुबह से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। दिन ढलने पर मुहूर्त के अनुसार होली को जलाया/दहन किया जाता है। होली की आग में चने के होले, गेहूं और जौ की बालियां भुनी जाती हैं। 


होली के दिन लोग क्या करते हैं

होली के दिन लोग अपने घरों में खीर, पूरी और अनेक पकवान बनाते हैं।
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होलिका दहन के दूसरे दिन सुबह से ही लोग एक दूसरे पर, मिट्टी, गीली मिट्टी, कीचड़, रंग, गुलाल-अबीर इत्यादि लगाते हैं, सुबह होते ही लोग रंगों से खेलते अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं। 
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सबसे ज्यादा आनंद बच्चों को मिलता है, बच्चे पिचकारियों से रंग उड़ा कर अपना मनोरंजन करते हैं। सब पर रंग डालते भागते दौड़ते मजे लेते हैं।  
कुछ लोग एकत्रित हो कर भांग पीकर ढोल बजाते हुए होली के गीत गाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग भी लगाया जाता है। इस दिन छोटी-छोटी टोलियाँ जगह-जगह रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती देखी जा सकती हैं।


क्यों मनाई जाती है होली, होली के त्योहार की कहानी 

होली के त्योहार की अनेक कहानियाँ हैं। जिनमें से सबसे प्रसिद्ध/मशहूर कहानी है भक्त प्रहलाद की। प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था, वह अपनी ताकत और अहंकार में स्वयं को ही ईश्वर/ भगवान मानने लगा था। उसने दैत्य ने अपने राज्य में भगवान का नाम लेने पर भी पाबंदी लगा दी थी। 
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। प्रहलाद की इस ईश्वर भक्ति के कारण से क्रोधवश हिरण्यकश्यप ने उसे कई बार अनेक कठोर दंड भी दिए, यहां तक कि प्रहलाद को जहरीले सर्पों से भरे स्थान पर भी छोड़ दिया गया, लेकिन प्रहलाद नहीं मरा, और कई यातनाएं सहने के बाद भी प्रहलाद ने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। 
हिरण्यकश्यप की छोटी बहन का नाम होलिका था, उसको वरदान प्राप्त था कि वह आग में जल नहीं सकती या फिर भस्म नहीं हो सकती। एक बार हिरण्यकश्यप को इस वरदान का फायदा उठाने का ख्याल आया तो उसने यह आदेश दिया कि होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठेगी, क्योंकि ऐसा करने से होलिका को कुछ भी नहीं होगा लेकिन प्रहलाद की मौत हो जाएगी।  
हिरण्यकश्यप के आदेश पर बहुत सी लकड़ियां एकत्रित कर उसपर होलिका भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गई, और उन लकड़ियों में आग लगा दी गई, लेकिन आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, और प्रहलाद बच गया। 
उसके बाद हिरण्यकश्यप ने क्रोध/गुस्से में आकर प्रहलाद को स्वयं जान से मारने का प्रयास किया और अपनी गदा से प्रहलाद पर कई वार किए लेकिन नहीं मार सका। और फिर उसने प्रहलाद से कहा कि बता तेरा भगवान कहां से, उसके जवाब में प्रहलाद ने उत्तर दिया कि भगवान तो कण-कण में वास करते हैं, वे हर जगह मौजूद हैं, तभी हिरण्यकश्यप ने कहा कि क्या तेरा भगवान इस महल के स्तंभ में भी है, प्रहलाद ने उत्तर दिया, हां भगवान उसमें भी हैं, तभी हिरण्यकश्यप ने अपनी गदा से उस स्तंभ पर वार किया और स्तंभ टूट गया, लेकिन उसी स्तंभ से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए थे, और उन्होंने हिरण्यकश्यप वध कर दिया।   
इसके लिए भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।

होली का महत्व 

बुराई पर अच्छाई की विजय, प्रेम और समर्पण भाव, वसंत ऋतु का आगमन, पेड़ पौधों में नई पत्तियां, रंग बिरंगे फूलों से बाग बगीचों का लहलहाना, खेतों में चने, गेहूं, जौ की बालियां आना, सरसों के फूलों का खिलना, मौसम का परिवर्तन और नववर्ष का आगमन होने के अलावा यह भी माना जाता है कि इसी दिन प्रथम पुरुष का आगमन भी हुआ था। 
होली के इस पर्व के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है, इसलिए यह पर्व नव संवत के आरंभ तथा वसंत के आगमन का प्रतीक भी है।

होली कब मनाई जाती है

होली का त्योहार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की प्रथम तिथि को मुहूर्त के अनुसार होलिका दहन किया जाता है, और दुसरे दिन होली खेली जाती है, इसके अलावा पंचमी तिथि को रंग पंचमी भी कहा जाता है, इस दिन भी होली खेली जाती है। लोग इसे छोटी होली भी कहते हैं। 

होलीकोत्सव का इतिहास 

भारत देश के बहुत से मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का भी उल्लेख किया है कि होली का त्योहार केवल हिंदू ही नहीं बल्कि मुसलमान भी मनाते हैं। 
मशहूर कवि अमीर खुसरो, हजरत निजामुद्दीन औलिया, और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे मुस्लिम संप्रदाय के लोगों ने भी होली के उत्सव पर कई सुंदर रचनाएं लिखी हैं जो आज लोकप्रिय हैं।
मुस्लिमों द्वारा होली का त्योहार मनाने का सबसे प्रामाणिक इतिहास मुगल काल का है, क्योंकि इसमें होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। जिसमें अकबर का जोधाबाई के साथ होली खेलना और जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। इतिहास में यह भी वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी कहा जाता था। होली के दिन अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के मंत्री भी उन्हें रंग लगाने के लिए जाया करते थे।

होलीकोत्सव का हमारी संस्कृति में वर्णन

भगवान शिव और पार्वती के बीच पलाश (खाखरा) के केसरिया रंग के फूलों से खेली गई होली और राधा कृष्ण के बीच खेली गई होली प्रेम और छेड़छाड़ से भरी होने के कारण भक्ति और प्रेम का वर्णन भी है, जिसके माध्यम से प्राचीन काल के ग्रंथों, संस्कृत साहित्य और कविताओं भी में होली के त्योहार का कई अलग-अलग व अनेक रूपों का विस्तृत वर्णन है। वसन्तोत्सव पर महाकवि कालिदास की रचना के साथ-साथ अन्य कई कवियों लेखकों और साहित्यकारों जैसे कवि विद्यापति, रसखान, संत कबीर दास, सूरदास, रहीम, पद्माकर, मीराबाई, केशव, जायसी, बिहारी आदि अनेक कवियों ने अपनी-अपनी रचनाओं में इस पर्व का वर्णन किया है। 

होली स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी है

होली खेलने के उपाय और नुकसान

जहां प्राचीन काल में लोग फूलों से बने रंग, चंदन और गुलाल से ही होली खेला करते थे, वहीं आज आज गुलाल के साथ-साथ रासायनिक रंगों का उपयोग होने लगा है, जबकि ये रंग स्वास्थ्य, त्वचा और आंखों के लिए अत्यंत हानिकारक है। 
यह भी चिंता का विषय है, इसलिए होली खेलते समय इस बात का पूरा ध्यान रखें कि ये रंग आंखों में न जाने पाए, और त्वचा की सुरक्षा के लिए होली खेलने से पहले कोई भी आयुर्वेदिक क्रीम जरूर लगाएं। 

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