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ब्लैक फंगस या म्यूकर माइकोसिस क्या है? ब्लैक फंगस की पहचान और इसका पूरा विवरण

ब्लैक फंगस क्या है : ब्लैक फंगस के नए मामलों ने सरकार और स्वास्थ्य संगठनों की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि यह देश के अनेकों राज्यों में एक नई समस्या निर्मित कर रहा है।
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ब्लैक फंगस 

कोरोना के साथ ही अब ब्लैक फंगस के मरीज भी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं, अगर हम इस स्थिति में थोड़ी सी सावधानी रखें तो इस ब्लैक फंगस से आसानी से अपने परिवार और खुद को बचाने के साथ साथ सभी को पूरी तरह सुरक्षित भी रख सकते हैं। 

ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) क्या है, ब्लैक फंगस की पहचान कैसे करें, और ब्लैक फंगस से बचने का तरीका 

लोगों में इसकी वजह से एक दहशत का माहौल बनता जा रहा है, प्रतिदिन इसके नए मामले दर्ज किए जा रहे हैं, जिसqwwàarकी वजह से डाक्टरों,स्वास्थ्य संगठनों और सरकार की चिंता बढ़ती जा रही है। इस संबंध में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की ओर से जो एडवाइजरी जारी की गई है वो लोगों के बहुत काम आ सकती है।  

ब्लैक फंगस क्या है: जानते हैं इसके बारे में 

ब्लैक फंगस को म्यूकोरमाइकोसिस भी कहा जाता है, ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) हवा और मिट्टी में रहता है, यह एक तरह का फंगल इन्फेक्शन (संक्रमण) है, ये Covid-19 से प्रभावित मरीजों या फिर उससे ठीक हो चुके मरीजों के लिए बहुत खतरनाक साबित हो रहा है, म्यूकर माइकोसिस उन्हीं लोगों पर ज्यादा प्रभावी होता है जिनका इम्यून सिस्टम बहुत ही कमजोर होता है। 

अगर कोई व्यक्ति किसी तरह की बीमारी से कमजोर हो जाता या फिर किसी बीमारी का इलाज कराने की वजह से बहुत कमजोर हो जाता है, या फिर जो किसी ना किसी बीमारी की वजह लगातार दवाइयों के सहारे पर हैं, आदि सभी वजहों से उन लोगों में रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत ही कम हो जाती है, इन्ही लोगों के साइनस (sinus) या फेफड़ों में वायु के माध्यम से ये संक्रमण पहुंच जाता है, या ऐसा कहें कि ये फंगस हवा में होने की वजह से ऐसे लोगों को संक्रमित कर सकता है। और अगर समय पर ध्यान नहीं दिया गया तो इससे मरीजों की मौत भी हो सकती है। 

ब्लैक फंगस क्यों है खतरनाक 

ब्लैक फंगस (Mucormycosis) आमतौर पर हमारे घर में ही पाया जाता है, ये गीली मिट्टी में म्यूकर के संपर्क में आने से होता है, ये मिट्टी, सड़ी हुई लकड़ी, जानवरों के गोबर, सड़े फलों, खाद और सब्जियों में पाया जाता है। हमारे देश में कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की भारी किल्लत की वजह से कई जगह मरीजों को बहुत ही गंदे तरीकों से ऑक्सीजन पहुंचाने का काम किया जा रहा है जिसकी वजह से भी ब्लैक फंगस के प्रकरण तेजी से बढ़े हैं। 

ब्लैक फंगस के लक्षण, व इसकी पहचान कैसे करें

ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) से इन्फेक्टेड होने वाले व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी, बुखार, खांसी, सर्दी, सिर में दर्द, थोड़ी बहुत दिमागी विकृति, होने के साथ साथ नाक और कान के आसपास की त्वचा के काला पड़ने के अलावा उसमें दर्द भी होता है। ये एक ऐसी बीमारी है जो बहुत तेजी से फैलती है, और इसका पता ENT विशेषज्ञ या फिर MRI जांच की सहायता से लगाया जाता है। 


ब्लैक फंगस का कारण और ब्लैक फंगस (Mucormycosis) से ज्यादा खतरा किन्हें है

इस बीमारी का मुख्य कारण स्टेरॉयड का बहुत ज्यादा इस्तेमाल से, या फिर जिन लोगों को डायबिटीज (शुगर) बहुत ज्यादा बढ़ गई है, या मरीजों को लंबे समय तक गंदी ऑक्सीजन देते रहना है, इसके अलावा कैंसर के मरीजों में, और ट्रांसप्लांट के बाद जिन लोगों को दिक्कत होती है उन्हें इसके होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। इससे उन लोगों को ज्यादा खतरा रहता है जो बहुत लंबे समय तक आईसीयू में रहते हैं, जिन लोगों का शुगर लेवल बहुत अधिक हो। 

 

Black fungus: ध्यान रखने योग्य बातें

इन बातों का जरूर ध्यान रखें गले में या गले की हड्डी में दर्द, दांतों से संबंधित कोई समस्या होने पर, सांस लेने में परेशानी या फिर सीने में दर्द होने पर, बुखार, नजर कमजोर होना, नाक से खून आना या फिर लम्बे समय तक नाक जाम रहने पर, तुरंत बिना देर किए मर्ज की पुष्टि के लिए डॉक्टर से परामर्श लें और इसकी जांच करवाएं। किसी भी तरह की एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल बगैर डॉक्टर की सलाह के ना करें, डायबिटीज रोग से पीड़ित लोग जो कोरोना से ठीक हो गए हैं, या वो लोग जिन्हें कोरोना नहीं हुआ है, वो अपने शुगर लेवल को कंट्रोल में रखें। 


Black fungus से बचने के लिए क्या करें और क्या है इसका इलाज 

सबसे पहले तो आप कहीं भी जाएं मास्क जरूर पहनें, धूल, मिट्टी, धुएं से दूर रहें, कोशिश करें कि मिट्टी से बचे रहें, अच्छी तरह स्नान करें, अपने शरीर और घर के आस पास सफाई रखें। 
मरीज को दी जाने वाली ऑक्सीजन की क्वालिटी पर ध्यान देने के साथ साथ इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि ऑक्सीजन डिलीवरी से पहले ह्यूमिडिफिकेश के लिए बार-बार स्टेरलाइज्ड और डिस्टिल्ड वाटर का ही इस्तेमाल किया जाए, कंटेनर के सभी डिस्पोजेबल हिस्से को बार-बार बदलना चाहिए, और हो सके तो स्टेरॉयड का इस्तेमाल भी बहुत कम करना चाहिए।   

अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद कोरोना के मरीजों को अपना शुगर लेवल लगातार चेक करते रहना चाहिए, और इसे नियंत्रण में रखने की पूरी कोशिश करना चाहिए, इस फंगस की पहचान करने की बात है तो हमारे किचन या फ्रिज में रखे फल, अन्य खाद्य पदार्थ या ब्रेड आदि जब सड़ने लगते हैं तो इनमें फफूंदी लग जाती है, ऐसे में समय रहते उन्हें हटाना/फेंकना भी जरूरी है। 


Covid-19 के इलाज में सही समय पर स्टेरॉयड का इस्तेमाल होना चाहिए, स्टेरॉयड सीधे तौर पर वायरस से नहीं लड़ते हैं, ये सिर्फ कोरोना के प्रभाव से लड़ने में ही कारगर होते हैं, कोरोना होने के शुरुआती दिनों में ही मरीज को स्टेरॉयड लेने पर यह हानिकारक हो सकता है, इससे वायरस को और बढ़ावा मिल सकता है, इससे इम्यूनिटी भी कम होती है, डायबिटीज के मरीज को बेवजह स्टेरॉयड लेने पर उसका शुगर लेवल बढ़ने की संभावना अधिक होती है, जिसकी वजह से मरीज में कोरोना संकट के गंभीर होने के साथ-साथ उसे म्यूकर माइकोसिस होने की भी संभावना बढ़ जाती है। 

ध्यान रखें कि इसके लिए देशभर के डॉक्टर ने उपरोक्त गाइडलाइन दी है, उनका पालन करें। 

नोट:- यह जानकारी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार और स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, की तरफ से जारी की गई है, और हमने इसे सूचनाओं के अध्ययन से प्राप्त किया है। 

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